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kidhar mai.n jaa_uu.N ... kabhii kisii kii Kushiyaa.N ko_ii luuTe naa

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किधर मैं जाऊँ समझ न पाऊँ बुला रही हैं दो राहें
इधर है ममता और उधर हैं भीगी निग़ाहें

कभी किसी की ख़ुशियाँ कोई लूटे ना
बनते-बनते महल किसी का टूटे ना
कभी किसी की ...

भँवर से बच के एक भटकती नाव लगी थी किनारे
किसे ख़बर थी फिर पहुँचेगी इन आँसुओं के द्वारे
हाय इस तरह भाग किसी से रूठे ना
बनते-बनते महल ...

अभी अभी दो फूलों वाली झूम रही थी डाली
घिरी अचानक काली बदली बिजली गिराने वाली
होते-होते साथ किसी का छूटे ना
बनते-बनते महल ...

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