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Kataa nahii.n ... a.ndhero.n ko chiir ke aaj roshanii ye chalii

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ख़ता नहीं
मेरी कुछ ख़ता नहीं
ख़ामोश रह ना सका
ना जाने क्योँ पता नहीं
अब मगर
ये पूरा हुआ है क़हर
अपनी है शाम-ओ-सहर
भीगी है फिर क्यों नज़र
( इन हवाओ में पाँव रख कर हम आज उड़ने लगे
हाथ ये जो उठे यहाँ कई ख़ाब जुड़ने लगे ) -२

अंधेरों को चीर के आज रोशनी ये चली
अपनों ने गिरह खोल दी दुनिया लगे भली
ख़ुशियाँ बरसती हैं यहाँ सब दुख पुराने लगे
यूँ मुसकुराने की चाह में कितने ज़माने लगे

सहमी हुई
मुरादें कई पहनी हुई
खोया है सारा जहाँ
कैसी ये बेरहमी हुई
जी गये
देखा तुझे तो हम जी गये
नज़रों से छू के तुझे
हज़ारों ग़म सी गये
( जिस्म से आज रूह तक तुझमें समा जायेंगे
फ़ासलों को मिटा के हम दुनिया बसा जायेंगे ) -२

( अंधेरों को चीर के आज रोशनी ये चली
अपनों ने गिरह खोल दी दुनिया लगे भली
ख़ुशियाँ बरसती हैं यहाँ सब दुख पुराने लगे
यूँ मुसकुराने की चाह में कितने ज़माने लगे ) -३

Comments/Credits:

			 % Producer: Sohail Khan Productions
% Director: Puneet Sira
% Audio: Super Cassettes Industries Ltd, T Series, www.t-series.com
% Cassette: SHFC 1/3450 Royal, Cost: Rs 50/-
		     
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