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kal raat bazm me.n jo milaa gulabadan saa thaa

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कल रात बज़्म में जो मिला गुलबदन सा था
ख़ुश्बू से उसके लफ़्ज़ थे चेहरा चमन सा था

देखा उसे तो बोल पड़े उसके ख़त्ब-ओ-खाल
पूछा उसे तो चुप सा रहा कम-सुखन सा था

तन्हाइयों की रुत में भी लगता था मुतमइन
वो शख़्स अपनी ज़ात में इक अंजुमन सा था

वो सादगी पहन के भी दिल में उतर गया
उसकी हर इक अदा में अजब भोल पन सा था

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