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kahii.n chal naa de raat kaa kyaa Thikaanaa

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आ : कहीं चल ना दे रात का क्या ठिकाना
इधर आओ ज़ुल्फ़ों में तुमको छिपा लें
र : कहीं देख ले फिर न हमको ज़माना
कहो तो सितारों के दीपक बुझा दें

आ : ये रात आई है मिल भी लो चुपके-चुपके
गुज़र जाए कब ये न जाने
र : नज़र आज मिलाएँ हम-तुम कुछ ऐसी
ठहर जाएँ जाते ज़माने
आ : नसीबों से मिलता है ये समाँ
कहीं देख ले फिर ...

र : तेरी ज़ुल्फ़ छू ली तो आवारा बादल
महकने बहकने लगा है
आ : झुका चाँद का सर घटाओं का आँचल
सरकने ढलकने लगा है
र : तो फिर छेड़ दो दिल की दास्ताँ
कहीं चल न दे ...

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