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kabhii kahaa na kisii se tere fasaane ko - - Runa Laila

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कभी कहा न किसी से तेरे फ़साने को
न जाने कैसे ख़बर हो गई ज़माने को

सुना है ग़ैर की महफ़िल में तुम न जाओगे
कहो तो आज सजा लूँ गरीबखाने को

दुआ बहार की मांगी तो इतने फूल खिले
कहीं जगह न मिली मेरे आशियाने को

अब आगे इस में तुमहारा भी नाम आए गा
जो हुकम हो तो यहीं छोड़ दूं फ़साने को

'क़मर' ज़रा भी नहीं तुम को ख़ौफ़-ए-रुसवाई
चले हो चांदनी शब में उन्हें बुलाने को

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