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kabhii\-kabhii bezubaan parvat bolate hai.n

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कभी-कभी बेज़ुबान पर्वत बोलते हैं -२
पर्वतों के बोलने से दिल डोलते हैं

सर से मेरे आँचल सरकता है ऐसे
हाथों में ये कंगन खनकता है ऐसे
सीने में ये दिल धड़कता है ऐसे
जैसे उड़ते पंछी पर तौलते हैं
कभी-कभी बेज़ुबान ...

अपने ख़यालों से मैं शरमा रही हूँ
मदहोश हूँ होश में नहीं आ रही हूँ
बैठी हूँ डोली में कहाँ जा रही हूँ
रास्ते में मेरा घूँघट वो खोलते हैं
कभी-कभी बेज़ुबान ...

होंठों पर आ जाएँ अगर दिल की बातें
कैसे छुपाए नज़र दिल की बातें
दिल में ही रहती हैं मगर दिल की बातें
लोग प्रेमियों के मन को टोकते हैं
कभी-कभी बेज़ुबान ...

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