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kab ko_ii tujhasaa aa_iinaa aur yaa.N hai duusaraa - - Ghulam Ali

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कब कोई तुझसा आईना और याँ है दूसरा
है तो तेरा ही अक्स नुमाया है दूसरा

रुख़ इसका देखियो शब-ए-महताब में कोई
गोया ज़मीं पे माह-ए-ताबाँ है दूसरा

तेरे खराम-ए-नाज़ के सदके कि कब कोई
ऐसा चमन में सर्व-ए-खरामा है दूसरा

शक़्ल उनकी ये है जो कि है महव-ए-जमाल-ए-यार
शशदर खड़ा है एक तो हैराँ है दूसरा

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