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kaahe abakii ai bahaar

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काहे अबकी ऐ बहार
फीका है हर ख़ुमार
तुझ में जो बात थी वो कहाँ खो गई
हाय रे तू आज क्या से क्या हो गई

पहला सा रंग नहीं कलियों में तेरी
नहीं वो महक कहीं गलियों में तेरी
रानी तेरी रात की वो कहाँ खो गई

बिजली की बिन्दिया चमकती नहीं काहे
पवन बसंती बहकती नहीं काहे
सखी तेरे साथ की वो कहाँ खो गई

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			 % Date: 31 May 2004
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