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Kaab banake bikharatii jaatii hai

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ख़ाब बनके बिखरती जाती है
रात दिल में उतरती जाती है

रंग किसके चुरा लिये उसने
रोज़-ओ-शब वो निखरती जाती है

आ के उम्मीद में जला के चराग़
आज तो वो सँवरती जाती है

आ गया वो तो उम्र भर की थकन
जैसे पल में उतरती जाती है

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