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jaan me.n merii jaan aa_ii thii - - Ghulam Ali

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न उड़ा यूँ ठोकरों से मेरी ख़ाक़-ए-क़ब्र ज़ालिम
यही एक रह गई है मेरे प्यार की निशानी
ये झुकी झुकी निगाहें ये दबी दबी जवानी
तेरा हुस्न कर रहा है मेरे ग़म की तर्जुमानी

जान में मेरी जान आई थी
कल सबा किसकी बास लाई थी

फिर दहक उट्ठी आग दिल की हाय
हमने रो रो अभी बुझाई थी

कल बग़ूलों से भर गयाअ था दश्त
किसकी वहशत ने ख़ाक़ उड़ाई थी

पूछियो शम से के कैसे कटी
रात तो मेरे सर पे आई थी

दिल को रोऊँ के या जिगर को 'हसन'
अपनी दोनों से आशनाई थी

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