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jaam\-o\-miinaa merii nazaro.n se haTaa de saaqii

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जाम-ओ-मीना मेरी नज़रों से हटा दे साक़ी
ये जो आँखों में छलकती है पिला दे साक़ी

शोला-ए-इश्क़ से छलका दे मेरे शीशे को
और बेताब को बेताब बना दे साक़ी

फिर कभी होश न आये तो कोई बात नहीं
आज हम जितनी पियें उतनी पिला दे साक़ी

जोश-ए-मस्ती में बगलगीर हों बिछड़े हुये दिल
आज इन्सान को इन्सान बना दे साक़ी

ज़िन्दगी ख़ाब-ए-मुसलसल के सिवा कुछ भी नहीं
इसकी ताबीर तो 'दर्शन' को बता दे साक़ी

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