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ishq kii zi.ndaa nishaanii hai yah

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इश्क़ की ज़िंदा निशानी है यह
सदियों पुरानी कहानी है यह
ताजमहल की बाज़बानी है यह
कहानी है ये निशानी है यह
इश्क़ की ज़िंदा ...

दिल से आके इक दिल मिला
अल्लाह का करम ही तो था
एक दूजे में ही पा लिया
उन दो दिलों ने अपना खुदा
खुशनुमां थे दोनों जहां
क्या ज़मीन क्या आसमां
इश्क़ की ज़िंदा ...

उसकी आँखों में वो नूर था
बेबस मुहब्बत में चूर था
हूर जैसी उस महज़बीं के
हुस्न का ही ये क़ुसूर था
उस मुकद्दस इश्क़ का
था गज़ब का सिलसिला
इश्क़ की ज़िंदा ...

राह-ए-उल्फ़त में कहीं
इक हमसफ़र यूं बिछड़ गया
उसने अपनी बुझती हुई
रोशन शमा से वादा किया
इन्तेहा में प्यार की इक अजूबा बना दिया

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