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insaan kyo.n rotaa hai insaan

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इन्सान क्यों रोता है इन्सान
हर ग़म की दवा पेश है कर ऐश का सामान

सुन बाँस की इस बाँसुरी के गीत सुहाने
सीने में हुए छेद तो गाती है तराने
मस्ती की यही शान
इन्सान क्यों रोता है ...

हो लब पे हँसी से पे जो आफ़त तेरे मंडलाए
भर जाम ख़ुशी का जो मुसीबत की घटा छाए
दुख बहम है नादान
इन्सान क्यों रोता है ...

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