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ik ma.nzil raahii do phir pyaar na kaise ho

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ल : इक मंज़िल राही दो ( फिर प्यार न कैसे हो ) -२
मु : साथ मिले जब दिल दो ( फिर प्यार ना कैसे हो ) -२

हम भी वही हैं दिल भी वही है धड़कन मगर नई है
ल : देखो तो मीत आँखों में प्रीत ( क्या रंग भर गई है ) -२
दो : इक मंज़िल राही दो ...

ल : निकले हैं धुन में अपनी लगन में मंज़िल बुला रही है
मु : ठंडी हवा भी अब तो मिलन के ( नग़में सुना रही है ) -२
दो : इक मंज़िल राही दो ...

मु : देखो वो फूल दुनिया से दूर आकर कहाँ खिला है
ल : मेरी तरह ये ख़ुश है ज़रूर ( इसको भी कुछ मिला है ) -२
दो : इक मंज़िल राही दो ...

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