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hu_ii hai shaam to aa.Nkho.n me.n bas gayaa phir tuu

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हुई है शाम तो आँखों में बस गया फिर तू
कहाँ गया है मेरे शहर के मुसाफ़िर तू

मैं जानता हूँ के दुनिया तुझे बदल देगी
मैं मानता हूँ के ऐसा नहीं ब-ज़ाहिर तू

हँसी ख़ुशी से बिछड़ जा अगर बिछड़ना है
ये हर मक़ाम पे क्या सोचता है आख़िर तू

'फ़राज़' तूने उसे मुश्क़िलों में डाल दिया
ज़माना साहिब-ए-ज़र और सिर्फ़ शाइर तू

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