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ho.nTho.n se gul\-fishaa.N hai.n vo aa.Nkho.n se ashq\-baar ham - - Talat

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होंठों से गुल्फ़िशाँ हैं वो आँखों से अश्क़्बार हम
सावन से वो हैं बेखबर बेगाना-ए-बहार हम

अर्श की ये बुलन्दियाँ फ़र्श की बस्तियों से है
उन क गुरूर देख कर बन गये खाक़्सार हम
होंठों से गुल्फ़िशाँ हैं वो ...

परवाना जा के जब गिरा शोला तो काँप काँप उठा
उस पे न कुछ असर हुआ जिस पे हुए निसार हम
होंठों से गुल्फ़िशाँ हैं वो ...

पी है किसी की बज़्म में इतनी कि फिर न उठ सके
होश-ओ-हवास कुछ नहीं कितने हैं होशियार हम
होंठों से गुल्फ़िशाँ हैं वो ...

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