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har shaam shaam\-e\-Gam hai

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हर शाम शाम-ए-ग़म है
हर रात है अंधेरी
अपना नहीं है कोई
क्या ज़िंदगी है मेरी

ग़म सहते सहते ग़म की
(तसवीर बन गया हूँ) - २
जा ऐ बहार-ए-दुनिया
हालत न पूछ मेरी
क्या ज़िंदगी है मेरी
हर शाम शाम-ए-ग़म है

सामान-ए-ज़िंदगी में
(कुछ भी नहीं बचा है) - २
एक दर्द रह गया है
और एक याद तेरी
क्या ज़िंदगी है मेरी
हर शाम शाम-ए-ग़म है ...

खुशियों का एक दिन भी
(आया न ज़िंदगी में) - २
पछता रहा हूँ मैं तो
दुनिया में आ के तेरी
क्या ज़िंदगी है मेरी
हर शाम शाम-ए-ग़म है ...

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			 % Date : 17 august 2002
		     
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