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ham hai.n mataa\-e\-kuuchaa\-o\-baazaar kii tarah

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हम हैं मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार की तरह
उठती है हर निगाह खरीदार की तरह

वो तो कहीं हैं और मगर दिल के आस पास
मगर दिल के आस पास
फिरती है कोई शह निगाह-ए-यार की तरह
हम हैं ...

मजरूह लिख रहे हैं वो अहल-ए-वफ़ा का नाम
अहल-ए-वफ़ा का नाम
हम भी खड़े हुए हैं गुनहगार की तरह
हम हैं ...

इस कू-ए-तिश्नगी में बहुत है के एक जाम
हाथ आ गया है दौलत-ए-बेदार की तरह

सीधी है राह-ए-शौक़ पर यूँ ही कभी कभी
ख़म हो गई है गेसू-ए-दिलदार की तरह

अब जा के कुछ खुला हुनर-ए-नाखून-ए-जुनून
ज़ख़्म-ए-जिगर हुए लब-ओ-रुख़्सार की तरह

Comments/Credits:

			 % Credits: Dinesh K. Prabhu, Nita Awatramani
% Editor: Anurag Shankar (anurag@astro.indiana.edu)
		     
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