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gunagunaatii hai hawaa phuul khile diip jale

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गुनगुनाती है हवा फूल खिले दीप जले
हँस पड़ी रात महकते हुये आँचल के तले

यूँ तमन्नायें चमक उठती हैं दिल में जैसे
चेहरा-ए-वक़्त पे रह रह के कोई हाथ मले

बच के तारों की निगाहों से गुलों से छुप कर
दो निगाहों की मुलाकात हुई रात ढले

रंग-ओ-ख़ुश्बू से छलकने लगा मयख़ाना-ए-दिल
साक़िया जाम चले जाम चले जाम चले

आज 'दर्शन' नये अन्दाज़ से है गर्म-ए-नवा
उसकी आवाज़ से नग़्मों के नय दीप जले

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