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gulashan kii faqat phuulo.n se nahii.n - - Jagjit Singh

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गुलशन की फ़क़त फूलों से नहीं
कांटों से भी ज़ीनत होती है
जीने के लिये इस दुनिया में
ग़म की भी ज़रूरत होती है

ऐ वाइज़-ए-नादान करता है
तू एक क़यामत का चर्चा
यहाँ रोज़ निगाहें मिलती हैं
यहाँ रोज़ क़यामत होती है

वो पुरसिश-ए-ग़म को आये हैं
कुछ कह न सकूं चुप रह न सकूं
ख़ामोश रहूँ तो मुश्किल है
कह दूँ तो शिकायत होती है

करना ही पड़ेगा ज़क़त-ए-अलम
पीने ही पड़ेंगे यह आँसू
फ़रियाद-ओ-फ़ुग़ां से ऐ नादान
तौहीन-ए-मोहब्बत होती है

जो आके रुके दामन पे 'सबा'
वो अश्क़ नहीं हैं पानी है
जो आँसू न छलके आँखों से
उस अश्क़ की क़ीमत होती है

Comments/Credits:

			 % Transliterator: Rajiv Shridhar (rajiv@hendrix.coe.neu.edu) 
% Date: Thu Jul 27, 1995
% Credits: U.V. Ravindra (uvr@tata_elxsi.soft.net) 
%          Irfan Moinuddin (moin@helix.midway.uchicago.edu)
		     
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