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Gam na kar zamaanaa aur aayegaa

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ग़म न कर खुशी का दौर आयेगा
ग़म न कर ज़माना और आयेगा

खत्म हो गयी सितम की दास्ताँ
झुक रहा है अब ज़मीं पे आसमाँ
अब न ये हँसी तेरी रुलायेगा
ग़म न कर ...

आ गये हैं देखो दिन बहार के
दिन गुज़र गये हैं इंतज़ार के
दुःख का ये समा बदल ही जायेगा
ग़म न कर ...

चार दिन गुज़ार दे हँसी खुशी
आ गया वो वक़्त जब की आदमी
ठोकरें नसीब के न खायेगा
ग़म न कर ...

देखना ये रात कट ही जायेगी
इसके बाद सुबह मुस्कुरायेगी
इक नया जहाण जगमगायेगा
ग़म न कर ...

Comments/Credits:

			 % Transliterator: Vijay Kumar
		     
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