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Gam kii a.ndherii raat me.n

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रफ़ी: ग़म की अंधेरी रात में
दिल को ना बेक़रार कर
सुबह ज़रूर आयेगी
सुबह का इन्तज़ार कर
ग़म की अंधेरी रात में

तलत: दर्द है सारी ज़िन्दगी
जिसका कोई सिला नहीं
दिल को फ़रेब दीजिये
और ये हौसला नहीं - २

रफ़ी: खुद से तो बदग़ुमाँ ना हो
खुद पे तो ऐतबार कर
सुबह ज़रूर आयेगी
सुबह का इन्तज़ार कर
ग़म की अन्धेरी रात में

तलत: खुद ही तड़प के रह गये
दिल कि सदा से क्या मिला
आग से खेलते रहे
हम को वफ़ा से क्या मिला - २

रफ़ी: दिल की लगी बुझा ना दे
दिल की लगी से प्यार कर
सुबह ज़रूर आयेगी
सुबह का इन्तज़ार कर

ग़म की अंधेरी रात में ...

Comments/Credits:

			 % Transliterator: Ravi Kant Rai (rrai@plains.nodak.edu)
% Editor: Anurag Shankar (anurag@chandra.astro.indiana.edu)
		     
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