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Gam ba.De aate hai.n qaatil kii nigaaho.n kii tarah - - Jagjit Singh

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ग़म बड़े आते हैं कातिल की निगाहों की तरह
तुम छिपा लो मुझे, ऐ दोस्त, गुनाहों की तरह

अपनी नज़रों में गुनहगार न होते, क्यों कर
दिल ही दुश्मन हैं मुखालिफ़ के ग्वाहों की तरह

हर तरफ़ ज़ीस्त की राहों में कड़ी धूप है दोस्त
बस तेरी याद का साया है पनाहों की तरह

जिनके ख़ातिर कभी इल्ज़ाम उठाए, 'फ़ाकिर'
वो भी पेश आए हैं इनसाफ़ के शाहों की तरह

Comments/Credits:

			 % Transliterator: Rajiv Shridhar (rajiv@hendrix.coe.neu.edu)
% Date: Sun Nov 5, 1995
% Editor: Rajiv Shridhar (rajiv@hendrix.coe.neu.edu)
		     
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