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dost ban kar bhii nahii.n saath nibhaane waalaa - - Ghulam Ali

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दोस्त बन कर भी नहीं साथ निभाने वाला
वही अंदाज़ है ज़ालिम का ज़माने वाला

क्या कहें कितने मरासिम थे हमारे उसके
वो जो इक शख्स है मुँह फेर के जाने वाला

मैंने देखा है बहारों में चमन को जलते
है कोई ख़ाब की ताबीर बताने वाला

तुम तकल्लुफ़ को भी इख़लास समझते हो 'फ़राज़'
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला

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