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do dilo.n ko ye duniyaa

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दो दिलों को ये दुनिया मिलने ही नहीं देती
आशाओं की कलियों को खिलने ही नहीं देती

इक बाग़ में क्या देखा बुल्बुल वहां रोता था
और पास खड़ा माली कुछ हार पिरोता था
दिल चीर के इक फूल का ख़ुश कितना वो होता था
बुल्बुल था तड़प जाता जब सूई चभोता था
दुख सह न सका बुल्बुल कुछ कह न सका बुल्बुल
फिर बहने लगे आँसू और कहने लगे आँसू
ख़्या ?
दो दिलों को ये दुनिया ...

तुम मुझ से ये फूछो गे क्या फूल की हालत थी
रूठा हुआ माली था बिगड़ी हुई क़िसमत थी
आँखों में तो आँसू थे बेचैन तबिअत थी
सुनसान था दिल उसका बरबाद मुहब्बत थी
बुल्बुल से जुदा हो कर माली से ख़फ़ा हो कर
कांटों में लगा रहने और फूल लगा कहने
क्या ?
दो दिलों को ये दुनिया ...

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