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dekhaa idhar udhar to ye Thokar lagii mujhe

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देखा इधर उधर तो ये ठोकर लगी मुझे
अपनी ही चाप राह का पत्थर लगी मुझे

भड़का हुआ था शोला-ए-एहसास इस क़दर
सहरा की धूप साये से बेहतर लगी मुझे

तक़सीम हो गया हूँ मैं ख़ैरात की तरह
दुनिया किसी फ़क़ीर की चादर लगी मुझे

यूँ दिल बुझा के ख़ून से उठने लगा धुवाँ
उठते धुवें की लौ तेरा पैकर लगी मुझे

पथरा चला है जिस्म भी आँखों के साथ साथ
वो ज़ल्ब-ए-इंतज़ार 'मुज़फ़्फ़र' लगी मुझे

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