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dekhaa hai zi.ndagii ko kuchh itanaa kariib se

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देखा है ज़िंदगी को, कुछ इतना करीब से
चहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से

कहने को दिल की बात जिन्हें ढूँढते थे हम - २
महफ़िल मेइं आ गये हैं वो अपने नसीब से
देखा है ज़िंदगी को, कुछ इतना करीब से

नीलम हो रहा था किसी नाज़नीन का प्यार - २
क़ीमत नहीं चुकाई गैइ इक ग़रीब से
देखा है ज़िंदगी को, कुछ इतना करीब से

तेरी वफ़ा की लाश पे ला मैं ही डाल दूँ - २
रेशम का ये कफ़न जो मिला है रक़ीब से
देखा है ज़िंदगी को, कुछ इतना करीब से

Comments/Credits:

			 % Transliterator: Rajiv Shridhar 
% Date: 06/13/1996
% Credits: Manjeet Rekhi 
%          Samiuddin Mohammed 
		     
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