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darpaN ko dekhaa, tuune jab jab kiyaa shrR^i.ngaar

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दपर्अण को देखा, तूने जब जब किया श्रृंगार
फूलों को देखा, तूने जब जब आई बहार
एक बदनसीब हूँ मैं (३)
मुझे नहीं देखा एक बार

सूरज की पहली किरनों को, देखा तूने अलसाते हुए
रातों में तारों को देखा, सपनों में खो जाते हुए
यूँ किसी न किसी बहाने (२)
तूने देखा सब संसार (२)

दपर्अण को देखा, तूने जब जब किया श्रृंगार

काजल की क़िस्मत क्या कहिये, नैनों में तूने बसाया है
आँचल की क़िस्मत क्या कहिये, तूने अंग लगाया है
हसरत ही रही मेरे दिल में (२)
बनूँ तेरे गले का हार (२)

दपर्अण को देखा, तूने जब जब किया श्रृंगार

Comments/Credits:

			 % Transliterator: Ravi Kant Rai (rrai@plains.nodak.edu)
% Credits: Satish Subramanian (subraman@cs.umn.edu)
% Editor: Anurag Shankar (anurag@astro.indiana.edu)
		     
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