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dariichaa be\-sadaa ko_ii nahii.n hai - - Ghulam Ali

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वो करें भी तो किन अल्फ़ाज़ में शिक़वा तेरा
जिनको तेरी निगह-ए-लुत्फ़ ने बरबाद किया

दरीचा बे-सदा कोई नहीं है
अगरचे बोलता कोई नहीं है

रुकूँ तो मंज़िलें हि मंज़िलें हैं
चलूँ तो रास्ता कोई नहीं है

खुली हैं खिड़कियाँ हर घर की लेकिन
गली में झाँकता कोई नहीं है

किसी से आश्ना ऐसा हुआ हूँ
मुझे पहचानता कोई नहीं है

मैं ऐसे जमघटे में खो गया हूँ
जहाँ मेरे सिवा कोई नहीं है

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