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daa_im pa.Daa huaa tere dar par nahii.n huu.N mai.n - - Ghulam Ali

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दाइम पड़ा हुआ तेरे दर पर नहीं हूँ मैं
ख़ाक़ ऐसी ज़िंदगी पे, कि पत्थर नहीं हूँ मैं

क्यों गदर्इश-ए-मुदाम से घबरा न जाये दिल
इन्सान हूँ, प्याला-ओ-साग़र नहीं हूँ मैं

या रब ज़माना मुझको मिटाता है किस लिये
लौह-ए-जहाँ पे हर्फ़-ए-मुक़र्रर नहीं हूँ मैं

किस वास्ते अज़ीज़ नहीं जानते मुझे
लाल-ओ-ज़मुर्द-ओ-ज़र-ओ-गौहर नहीं हूँ मैं

करते हो मुझको मन-ओ-क़दम-बोस किस लिये
क्या आसमान के भी बराबर नहीं हूँ मैं

'ग़ालिब' वज़ीफ़ाख़्वार हो, दो शाह को दुआ
वो दिन गये कि कहते थे, नौकर नहीं हूँ मैं

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