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chhe.D kar tazkiraa\-e\-daur\-e\-jawaanii royaa - - Ghulam Ali

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मुझको तो होश नहीं तुमको ख़बर हो शायद
लोग कहते हैं कि तुमने मुझे बरबाद किया

छेड़ कर तज़्किरा-ए-दौर-ए-जवानी रोया
रात यादों को सुना कर मैं कहानी रोया

ज़िक्र था कूचा-ओ-बाज़ार के हंगामों का
जाने क्या सोच के वो यूसुफ़-ए-सानी रोया

जब भी देखी है किसी चेहरे पे एक ताज़ा बहार
देख कर मैं तेरी तस्वीर पुरानी रोया

तेरी महकी हुई साँसों की लवें याद आईं
आज तो देख के मैं सुबह-ए-सुहानी रोया

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