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chalo jhuumate sar pe baa.Ndhe kafan

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चलो झूमते सर पे बाँधे कफ़न
लहू माँगती है ज़मीन-ए-वतन [२]

चलो झूमते...

( जहाँ हम जिये, जहाँ हम पले
ज़मीँ है वो दुश्मन के क़दमोँ तले ) -२

ज़मीँ मत कहो है वो अपना बदन, अपना बदन

चलो झूमते सर पे बाँधे कफ़न
लहू माँगती है -ए-वतन
चलो झूमते...

मुख़ालिफ़ कई हरिक? आशियाँ
कहीँ पर बगूले?, कहीँ आन्धियाँ
अरे लुट न जाये हमारा चमन, हमारा चमन

चलो झूमते सर पे बाँधे कफ़न
लहू माँगती है -ए-वतन

चले सर लिये हथेली पे हम
शहीदों के ज़िन्दा लहू की क़सम
कि मरना वतन पे हमारा चलन

चलो झूमते सर पे बाँधे कफ़न
लहू माँगती है -ए-वतन

Comments/Credits:

			 % Transliterator: Pavan Jha
% Date: 2 Sep 2004
% Series: GEETanjali
% Credits: U V Ravindra
		     
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