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chalatii chalii jaaye zi.ndagii kii Dagar ... duur kaa raahii

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चलती चली जाये, ज़िंदगी की डगर
कभी खत्म ना हो, ये सफ़र
मन्ज़िल की उसे, कुछ भी ना खबर
फिर भी चला जाए, दूर का राही
दूर का राही (२) ...

मुड़ के ना देखे, कुछ भी ना बोले
भेद अपने दिल का, राही ना खोले
आया कहाँ से, किस देश का है
कोई ना जाने, क्या ढूंढता है
मन्ज़िल की उसे ...

झलके ना कुछ भी, आशा निराशा
क्या कोई समझे, नैनोँ की भाषा
चेहरा कि जैसे, कोरा सफ़ा है
क़िस्मत ने जिस पर, कुछ ना लिखा है
मन्ज़िल की उसे ...

Comments/Credits:

			 %          Preetham Gopalaswamy (preetham@src.umd.edu)
% Editor: Anurag Shankar (anurag@astro.indiana.edu)
		     
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