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bedard zaraa sun le Gariibo.n kii kahaanii

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बेदर्द ज़रा सुन ले ग़रीबों की कहानी
खाना तो है खाना इन्हें मिलता नहीं पानी

मलमल के बिछौने पे है तू ऐश में खोया
हमसाया तेरा रात को पत्थर पे है सोया
तू ख़ुश है मुसलमानों को आराम कहाँ है
बतला मेरे हमदर्द इस्लाम कहाँ है
दोज़ख़ को भुला क्यों शोलाफ़शानी
बेदर्द ज़रा सुन ले ...

तुम बानी-ए-इस्लाम का फ़रमान तो देखो
अल्लाह का क्या हुक़म है क़ुरान तो देखो
इरशाद-ए-नबीं यह है कि खुद बाद में खाओ
भूखा जो पड़ोसी हो उसे पहले खिलाओ
बीमार जो हैं उनकी मदद फ़र्ज़ तुम्हारा
मुहताज़ जो हैं उनको सदा देना सहारा
पर तुमने तो इनमें से कोई बात न मानी
बेदर्द ज़रा सुन ले ...

बीमार ग़रीबों के लिए बन के भिखारी
ऐ भाइयों आए हैं ख़िदमत में तुम्हारी
है कार-ए-सबब आँख अगर रहम की खोली
दाता भला हो भर दे फ़क़ीरों की झोली
इस शाम से पैदा करो सुबह सुहानी
बेदर्द ज़रा सुन ले ...

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