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bahut us galii ke kiye hai.n re phere - - Saigal

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बहुत उस गली के किये हैं रे फेरे
यह जिनके लिये था, हुए वह न मेरे

पहुँचना उन्हें देखने की ललक में
कभी दिन ढला कर, किसी दिन सवेरे

(फिर उस देश में काहे)
फिर उस देश में हो तो काहे को आना
जहाँ चार दिन को लगाये हैं डेरे

सहारा नहीं रुत का, है क्या सुहाना
इस इक डाल पर हैं सभी के बसेरे

लगी जब से आँख आरज़ू की यह गत है
न सोना सवेरे न उठना सवेरे

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