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bahaar\-e\-husn terii ... jahaa.N tuu hai

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बहार-ए-हुस्न तेरी, मौसम-ए-शबाब तेरा
कहाँ से ढूँढ के लाए कोई जवाब तेरा
ये सुबह भी तेरे रुखसार की झलक ही तो है
के नाम लेके निकलता है आफ़ताब तेरा

जहाँ तू है वहाँ फिर चाँदनी को कौन पूछेगा -२
तेरा दर हो तो जन्नत की गली को कौन पूछेगा
जहाँ तू है ...

कली हो हाथ में ले कर बहारों को न शरमाना
ज़माना तुझको देखेगा कली को कौन पूछेगा
जहाँ तू है ...

फ़रिश्तों को पता देना न अपनी रहगुज़ारों का
वो क़ाफ़िर हो गए तो बन्दगी को कौन पूछेगा
जहाँ तू है ...

किसी को मुस्करा के ख़ूबसूरत मौत ना देना
क़सम है ज़िन्दगी की ज़िन्दगी को कौन पूछेगा
जहाँ तू है ...

Comments/Credits:

			 % Transliterator: Ravi Kant Rai (rrai@ndsun.cs.ndsu.nodak.edu)
% Editor: Anurag Shankar (anurag@astro.indiana.edu)
		     
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