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baa.Ndhii re kaahe priit

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(बाँधी रे काहे प्रीत
पिया के संग अन्जानी रीत) -२
बाली उमर में मैं ना समझी -२
क्या है प्रीत की रीत
बाँधी रे काहे (प्रीत) -२
पिया के संग अन्जानी रीत

पास रही तो मैं ना समझी
दूर हुई तो जाना
प्यार में कैसे अपना बन के
कोई बने बेगाना
कैसे बीतेगा अब जीवन -२
बिन साथी बिन मीत
बाँधी रे काहे प्रीत
पिया के संग अन्जानी रीत

अंग लगी है पेड़ की बेला
लहर को मिले किनारा
बिन साजन की मैं हूँ अकेली
मेरा कौन सहारा
ऐसा सूना लागे जीवन -२
जैसे सुर बिन गीत
बाँधी रे काहे (प्रीत) -२
पिया के संग अन्जानी रीत

Comments/Credits:

			 % Transliterator: Abhay Phadnis
% Date: 22 Oct 2004
% Series: Geetanjali
% generated using giitaayan
		     
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