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बाग़ों में पड़े झूले
तुम भूल गये हमको हम तुमको नहीं भूले

ये रक्स सितारों का
सुन लो कभी अफ़साना तक़दीर के मारों का

सावन का महीना है
साजन से जुदा रह कर जीना भी क्या जीना है

रावी का किनारा है
हर मौज के होंठों पर अफ़साना हमारा है

अब और न तड़पाओ
या हमको बुला भेजो या आप चले आओ

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