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baadal yuu.N garajataa hai

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बादल यूँ गरजता है डर कुछ ऐसा लगता है
चमक-चमक के लपक के ये बिजली हम पे गिर जायेगी

बाहर भी तूफ़ान, अन्दर भी तूफ़ान
बीच में दो तूफ़ानों के ये शीशे का मकान
ऐसे दिल धड़कता है
डर कुछ ऐसा लगता है ...

ये दीवानी शाम ये तूफ़ानी शाम
आग बरसती है सावन में पानी का है नाम
बस कुछ भी हो सकता है
डर कुछ ऐसा लगता है ...

तौबा हुस्न-ए-यार बदले रंग हज़ार
शर्म कभी आती है और कभी आता है प्यार
देखें कौन ठहरता है
डर कुछ ऐसा लगता है ...

तुम बैठो उस पार, हम बैठें इस पार
आओ अपने बीच बना लें हम कोई दीवार
दिल फिर भी मिल सकता है
डर कुछ ऐसा लगता है ...

Comments/Credits:

			 % Transliterator: Vijay Kumar
		     
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