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ab to is tarah merii aa.Nkho.n me.n Kaab aate hai.n

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अब तो इस तरह मेरी आँखों में ख़ाब आते हैं
जिस तरह आईने चेहरों को तरस जाते हैं

एहतियात अहल-ए-मोहब्बत के इसी शहर के लोग
गुल-ब-दस्त आते हैं और ख़्वाबा-रसन जाते हैं

जैसे तज़बीज़-ए-तअल्लुक़ की भी रुत हो कोई
ज़ख़्म भरते हैं तो अहबाब भी आ जाते हैं

हर कड़ी रात के बाद ऐसी क़यामत गुज़री
सुबहो का ज़िक्र भी आये तो लरज़ जाते हैं

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