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ab ke ham bichha.De to shaayad kabhii Kaabo.n me.n mile.n

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अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़ाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुये फूल किताबों में मिलें

ढूँढ उजड़े हुये लोगों में वफ़ा के मोती
ये ख़ज़ाने तुझे मुम्किन है ख़राबों में मिलें

तू ख़ुदा है न मेरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा
दोनों इन्साँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें

ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नशा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें

अब न वो मैं हूँ न वो तू है न वो माज़ी है 'फ़राज़'
जैसे दो साये तमन्ना के सराबों में मिलें

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