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ab aur kyaa kisii se maraasim ba.Dhaaye.n ham

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अब और क्या किसी से मरासिम बढ़ायें हम
ये भी बहुत है तुझको अगर भूल जायें हम

इस ज़िंदगी में इतनी फ़राग़त किसे नसीब
इतना न याद आ के तुझे भूल जायें हम

तू इतनी दिलज़दा तो न थी ऐ शब-ए-फ़िराक़
आ तेरे रास्ते में सितारे लुटायें हम

वो लोग अब कहाँ हैं जो कहते थे कल 'फ़राज़'
ऐ ऐ ख़ुदा न करना तुझे भी रुलायें हम

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