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aa.Nkh ko jaam samajh baiThaa thaa - - Jagjit Singh

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आँख को जाम समझ बैठा था, अन्जाने में
साक़िया! होश कहाँ था तेरे दीवाने में?

जाने किस बात की उनको है शिक़ायत मुझ से
नाम तक जिन का नहीं है मेरे अफ़साने में

दिल के टुकड़ों से तेरी याद की ख़्हुश्बू न गयी
बू-ए-मै बाकी है टूटे हुए पैमाने में

दिल-ए-बर्बाद में उम्मीद का आलम क्या है
टिमटिमाती हुइ एक शमा है वीराने में

Comments/Credits:

			 % Transliterator: K Vijay Kumar
		     
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