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sarazamiin\-e\-hindustaan ... meraa naam baadashaah khaan hai

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सरज़मीन-ए-हिन्दुस्तान अस्सलाम वालेकुम
मेरा नाम बादशाह खान है
इश्क़ मेरा मज़हब मुहब्बत मेरा इमान है
मुहब्बत जिसके लिए शीरी और फ़रहाद ने
पहाड़ों का सीना चीर कर दूध की नहर बहा दी
जिसके लिए मजनूं ने सहरा की ख़ाक छानी है
आज भी जिंदा हैं तवारीख बन कर
उसी मुहब्बत के लिए काबुल छोड़ पावन हिन्दोस्तान की सरज़मीं से
मुहब्बत की ख़ैर मांगने आया है
आजमाइश कठिन है
इम्तिहान मुश्किल है
लेकिन हौसला बुलंद है
लेकिन जीत हमेशा मोहब्बत की हुई है
सदियों से यही होता आया है
रोशनी अगर ख़ुदा को मंजूर तो अंखियों के चिराग जलते हैं
ख़ुदा गवाह ख़ुदा गवाह

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