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o patthar ke insaan ... mamataa kaa ra.ng maidaan

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ओ पत्थर के इन्सान ओ नीतिवान इन्सान
ममता का रंग मैदान जीवन शतरंज समान
तूने अपने घर्वाले मोहरे बना डाले
तेरा धर्म तो जीत गया तेरे पास बचा अब क्या

बन्द करो ये वाद विवाद कहां सीखा है ये तर्क वितर्क
मैं उस कुल का जिसमें हुआ है सदा धर्म का पालन
आदर्शों के साथ बंधा है मेरा सारा जीवन
मेरे धर्म की साक्षी मेरी जीवन साथी
ये तुम्हें बतलाएगी

लांघी मैने लक्ष्मन रेखा बदला नसीब मेरा
वचन पति का पत्नी को गीता इससे बच न सकी कोई सीता

तेरा ये व्यवहार क्या न्याय पे नहीं प्रहार
नहीं नहीं
ममता का रंग मैदान ...

धर्मपीठ मेरे घर से चली मेरे पुरखों की ये देन
सत्य धर्म सो जाये भले सोएं न मेरे नैन
मेरे नयनों के समान ये मेरी सन्तान
करेगी मेरा बखान

जन्मी मैं फूल बनके रह गई मैं शूल बनके
पिता मेरे परमेश्वर जैसे नीति बदलेगी कैसे

मन रोए नैन मुस्काएं क्या मर गया तेरा न्याय
नहीं नहीं
ममता का रंग मैदान ...

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