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ishq me.n khoye jaa_oge to baat kii tah ko paa_oge - - Ghulam Ali

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न उढ़ा यूँ ठोकरों से मेरी ख़ाके-क़ब्र ज़ालिम
यही एक रह गयी है मेरे प्यार की निशानी

इश्क़ में खोये जाओगे तो बात की तह को पाओगे
कद्र हमारी कुछ जानोगे दिल को कहीं जो लगाओगे

सब्र कहाँ बेताबी-ए-दिल से चैन कहाँ बे-ख़्वाबी है
सौ सौ बार गली में भटके घर से बाहर जाओगे

अश्क़ तो पानी के हैं लेकिन जलते जलते आवेंगे
दिल की लगी हैरान है साहब किस ढब मिल के बुझाओगे

चाहत 'मीर' सभी करते हैं रंज-ओ-तलब में रहते हैं
तुम जो अभी ताब हो जैसे जी से हाथ उठाओगे

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