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duur dekh alakaapurii

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दूर देख अलकापुरी जहाँ मेरी प्रिय नार
छुपी हुई सहमी ठिठकी सी लिये विरह का भार

आ तुझे मेरी दो अखियाँ बार बार पुकारती
विरह में रो रो उतारे आँसुओं की आरती

तुम बसे परदेस प्रीतम प्राण भी संग ले गये
क्या हुआ अपराध जो बदले में ये दुःख दे गये
सुख ले गये
जग लगे अंगार सा, सिंगार मैं न सँवारती
आ तुझे मेरी दो अखियाँ बार बार पुकारती

मिलन की इक आस पर ये दिन उगे और दिन ढले
जी रही हूँ इस तरह ज्यों तेल बिन बाती जले
कब तक जले
रात दिन गिन गिन के पल पल पंथ पंथ निहारती
आ तुझे मेरी दो अखियाँ बार बार पुकारती

Comments/Credits:

			 % Transliterator: K Vijay Kumar
		     
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